देहरादून। उत्तराखंड की अग्रणी समाजिक सरोकारों वालीं संस्था धाद हरवर्ष अपना नववर्ष कैलेंडर जारी करती है इस वर्ष ये आयोजन देहरादून रेसकोर्स के ट्रांजिट हॉस्टल में हुआ। इस अवसर पर धा द सचिव तन्मय ममगाईं ने कहा – नए साल के अवसर पर समाज में सवाल और मुद्दों पर ध्यान दिलाने के लिए धाद ने कैलेंडर का प्रयोग पहली बार 1993 में किया। तब गढ़वाली कविताओं के साथ हरजीत ने उसे डिजाइन किया। संसाधन सीमित ही नहीं थे न्यूनतम थे। उन दिनों धाद का लोकभाषा आंदोलन पहाड़ के अलग अलग स्थानों पर सक्रीय था फिर उत्तराखंड आंदोलन के दौर में हमने नए साल के ग्रीटिंग कार्ड निकाले जिसमे प्रस्तावित उत्तराखंड राज्य का नक्शा और उसके बाबत जानकारी मौजूद थी तब हमारे लिए यह अपनी गतिविधियों के लिए धन संग्रह का एक छोटा सा तरीका था फिर परसुंडाखाल में जब हमने बस्ता दान कार्यक्रम चलाया तो उसके लिए संसाधन जुटाने के लिए भी नए साल के कार्ड निकाले गए अगले दो तीन साल तक हमने कुछ कविता कार्ड के साथ इसका प्रयोग किया वो दौर मुफ्लसी का था जब न कोई बैंक खाता न रजिस्ट्रेशन था बस एक जूनून था।फिर सब थम गया और वो कसक बरसों भीतर रही।
इस प्रयोग को एक गतिवधि के साथ हमने फिर 2009 में सर्वे सभागार में एक पुराने छापे गए कविता पोस्टर में तारीख के पन्ने जोड़ कर किया लेकिन इसका फिर पहला औपचारिक प्रकाशन 2010 में पलायन के सवाल पर चारु चंद्र चंदोला की पलायन पर कविता के साथ शुरू किया। तब से इस विभिन्न सामाजिक प्रश्नों पर केंद्रित कैलेंडर के क्रम को हमने आज तक जारी रखा है एक दौर में यह हमारी प्रमुख गतिविधि थी और हम इसका खर्चा इसे बेच कर जुटाते थे बीते समय में हमने खुद को सक्षम बनाया है और अब जब हमारे स्पष्ट कार्यक्रम है तब यह उनके विचार और गतिविधि की सब तक ले जाने का एक सक्षम तरीका बन गया है. आज नए साल का कैलेंडर जारी करते समय हम उस बेहतरीन सामाजिक यात्रा को महसूसने की कोशिश भी करेंगे जो हमने अब तक की है और आगे की यात्रा पर अपने वर्तमान कार्यक्रमों को बेहतर बनाने के लिए बात भी करेंगे।