संजीव कंडवाल
अब आगे क्या होगा, कल तक भारत में धर्मनिरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता की बहस का प्रतीक अयोध्या अब देश को एक सगर्व सांस्कृतिक पहचान दे चुकी है। तो अब क्या होगा इस संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य का?
बीते 75 साल के इतिहास में सवाल हर बार पूछा गया, जैसा की ‘रामचंद्र गुहा’ ‘इंडिया ऑफ्टर गांधी’ में लिखते हैं कि शुरुआती साल में हर प्रधानमतंत्री की मौत के बाद यही सवाल पूछा गया कि अब लोकतंत्र का क्या होगा? हर सूखा, बाढ़, युद्ध के बाद इस देश में अकाल, भुखमरी की आशंका जताई गई, हर अलगाववादी आंदोलन के बाद देश की अखंडता पर संदेह किया गया। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, यह देश मजे से आगे बढ़ता रहा। इसी क्रम में गुहा लिखते हैं कि यह देश इतना विशाल ही, इतनी विविधता लिए हुए है कि इसे ‘दिमाग में समेटना’ तक मुश्किल है।
निश्चित तौर पर ‘दिमाग में न सिमट पाना’ ही इस देश की सबसे बड़ी खासियत है, इसी कारण अस्सी फीसदी हिंदू आबादी वाले देश में उनके अराध्य को अपना मूल स्थान प्राप्त करने के लिए 500 साल लग गए हैं, इसमें 75 साल आजाद भारत के भी शामिल है। इन 75 सालों से भी राम मंदिर को लेकर तीखी बहस चलती रही, दंगे हुए, जान माल का नुकसान हुआ। पर आखिरकार फैसला तो सबने स्वीकार ही किया है, भले ही कुछ लोग अतिरिक्त खुश हुए हों और कुछ लोगों के मन में टीस हो, लेकिन देश शांत ही बना रहा। तो आज का दिन इसी विधिवता का एक और रंग है, इसलिए इस पल को लेकर भी आशंकित होने या स्यापा पालने की जरूरत नहीं है, ‘इंडिया दैट इज भारत” कभी भी बेकाबू नहीं होगा, यह देश किसी के वश में कभी रहा ही नहीं है। इस मायने में यह देश राम भरोसे ही चलता है।
हमारी सभ्यता, संस्कृति के आदि पुरुष आज फिर से हमारे जीवन में प्रतिष्ठापित हुए हैं, इस पल की सभी को हार्दिक बधाई।
साभार संजीव कंडवाल की फेसबुक वॉल से