Headline
सर्दियों में भूलकर भी बंद न करें फ्रिज, वरना हो सकता है भारी नुकसान, ऐसे करें इस्तेमाल
कुवैत ने पीएम मोदी को अपने सबसे बड़े सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से किया सम्मानित 
मुख्यमंत्री धामी ने 188.07 करोड़ की 74 योजनाओं का किया लोकर्पण और शिलान्यास
अब सब विपक्षी दल वापस एकजुट होने लगे
निकाय चुनाव- पर्यवेक्षकों की टीम आज पार्टी नेतृत्व को सौंपेंगे नामों के पैनल
हमारी टीम घर-घर जाकर संजीवनी योजना और महिला सम्मान योजना के लिए करेगी पंजीकरण- अरविंद केजरीवाल
चोटिल हुए भारतीय टीम के कप्तान, 26 दिसंबर से शुरु होने वाले चौथे सीरीज के मुकाबले पर छाया संकट 
साल 2047 में भारत को विकसित बनाने में भारतीय कामगारों की रहेगी अहम भूमिका- प्रधानमंत्री मोदी 
कॉकटेल के सीक्वल पर लगी मुहर, शाहिद कपूर के साथ कृति सेनन और रश्मिका मंदाना मचाएंगी धमाल

जो जमीनी हालात हैं

मीडिया हेडलाइन्स से भारत की खुशनुमा तस्वीर उकेरने की कोशिश अक्सर होती रहती है। लेकिन जो जमीनी हालात हैं, वे इससे नहीं बदल सकते। विडंबना है कि इन हालात को बदलने की कोशिश के बजाय विकसित भारत का खोखला सपना दिखाया जा रहा है। अभी हाल में 2023-24 के अनुमानित सरकारी आर्थिक आंकड़े जारी हुए, तो उनसे पता चला कि इस वित्त वर्ष में (दो अपवाद वर्षों को छोड़ कर) भारत की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि 21 वर्ष के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। इस वर्ष यह वृद्धि दर 7.9 प्रतिशत रही। बीते 21 वर्षों में सिर्फ 2019-20 और 2020-21 में ये दर इससे कम रही थी, जब सारी दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में थी। एक अंग्रेजी वेबसाइट ने अपने विश्लेषण से बताया है कि चालू वित्त वर्ष में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी गिरावट आई है।

अप्रैल से सितंबर तक देश में सिर्फ 10.1 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया। इसके पहले (इस अवधि में) इतनी कम एफडीआई 2007-08 में आई थी। देश में औसत आम उपभोग का कमजोर बने रहना अब एक स्थायी हेडलाइन है। ताजा खबर यह है कि अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही में एफएमसीजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी हिंदुस्तान यूनिलिवर लिमिटेड का मुनाफा अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं बढ़ सका। कंपनी ने इसका कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मांग की कमजोर स्थिति को बताया है। ये सारी खबरें अलग-थलग नहीं हैं। बल्कि उस गंभीर आम माली हालत का सूचक हैं, जो लगातार गंभीर हो रही है।

दरअसल, जिस देश में कामकाजी उम्र वर्ग की लगभग 50 फीसदी आबादी सवा लाख रुपये से कम वार्षिक आय पर गुजारा करती हो, वहां महंगाई एवं सामाजिक सुरक्षाओं में कटौती का परिणाम इसी रूप में सामने आ सकता है। इस स्थिति का निहितार्थ यह है कि भारत के एक सशक्त बाजार के रूप में उभर सकने की संभावनाएं सीमित बनी हुई हैं। यह अवश्य है कि लगभग छह-सात करोड़ लोगों का एक उपभोक्ता वर्ग हमारे देश में मौजूद है और जो मौजूदा वैश्विक आर्थिक-राजनीति सूरत के बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसलिए मीडिया हेडलाइन्स से भारत की खुशनुमा तस्वीर उकेरने की कोशिश अक्सर होती रहती है। लेकिन जो जमीनी हालात हैं, वे ऐसे प्रयासों से नहीं बदल सकते। विडंबना यह है कि इन हालात को बदलने की कोशिश के बजाय विकसित भारत का खोखला सपना दिखाया जा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top